Skip to main content

Posts

Showing posts with the label Hindi

CampNaNoWriMo: Excerpt

As I am participating in this month's CampNaNoWriMo with a target of 20,000 words and lagging behind to achieve it, just thought to share an excerpt from the novella I am trying to complete. Tried to not to share the story but still be able to share the emotions I am trying to put in it... So, request to share your critical  comments -  even if you feel you shouldn't speak the truth of disliking it :) ...चाहेगा कौन बात उसकी नहीं है , मीतू ...वो तो तुझे भी पता है की कौन तुझे नहीं चाहेगा. बात ये है की तू किसे चाहती है ? कौन है जो तुझे बांधे हुए किसी अनकहे अनबुझे कसम में ? क्या बोलती मैं ? मुझे नहीं पता था अनु मुझे इतना समझ सकती है. मेरी माँ ने भी इतना नहीं समझा , डैडी काफी समझते थे - पर एक लड़की के मन में क्या उथलपुथल चल सकती वो या तो उनकी पहुँच से बाहर था या उनका पुरुष मन उन्हें चेष्टा ही नहीं करने देता होगा. पुरु लेकिन मुझे पूरा समझता था , मुझसे भी ज्यादा , बहुत ज्यादा। पर अनु की उस बात ने मेरे अन्दर के चोर को रंगे हाथ पकड़ा था.   ... न बताना हो तो मत ...

Camp NaNoWriMo July 2013: Finally!

Finally inspired by a friend blogger Ritu KT , I could able to gather some courage to participate in this Camp NaNoWriMoJuly 2013 . I have had already planned for the 50,000 words challenge scheduled for November, so for the camp I kept the target at 20,000 and language opted is Hindi. Reasons are simple , first to be in rather achievable limits (targeting galactically high not always helps), second Hindi would for sure help me to convert the flow of thoughts in to words easily and efficiently, and third it may let me back achieving the interest and competence in my mother tongue again :) ( yes, I actually feel so lost and fragile in Hindi these days ). Camp NaNoWriMo A marathon event PADE is already going on, July Camp will only put pressure on me that too in a month which I am already seeing fully packed up and heavily planned. What I need is determination ( now, I don’t believe in wishes and luck ), let’s see how it turned out to be. I will try to update the status of m...

पुस्तक समीक्षा: खैर...छोडो (Book Review - Khair...Chodo by VishwaDeepak)

सहकर्मी बिनीत के सुझाव पे ये काव्य-संग्रह प्रकाशन के पहले ही हफ्ते में मैंने मंगवाई. बिनीत न केवल मेरे सहकर्मी हैं, बल्कि मेरे साथ फूटबाल भी खेलते हैं (हमसे कहीं अच्छा), और पुस्तकों पे विमर्श भी करते हैं. फेसबुक पे यदा-कदा हिंदी प्रसंग और कवितायें पोस्ट करना उनका शौक भी है. उन्होंने सुझाया तो लगा शायद उनकी हिंदी कविताओं का स्रोत मिल गया है. आजकल के आनलाइन पुस्तक-विक्रेताओं को धन्यवाद, ३ दिन के भीतर ही पुस्तक की हस्ताक्षर-प्रति मेरे हाथ में थी. मैं कोई आलोचक नहीं हूँ, ना ही उतनी हैसियत रखता हूँ, पर जो अच्छा लगे उसकी तारीफ करना तो बनता है ( हालांकि तारीफ करने में मेरे हाथ थोड़े तंग ही हैं ). पुस्तक:       ख़ैर...छोडो कवी:        विश्व दीपक प्रकाशन:       हिंद-युग्म पन्ने:        १४४ सबसे पहली बात जो मुझे अच्छी लगी वो थी कविताओं की सूक्ष्मता और सुगमता. कवितायेँ सतही कतई नहीं हैं, पर फिर भी बहुत ही सहज हैं. हमारी प्रायः की सोच को ही बड़े ही कुशल से शब्दों में ...

काफी दिनों बाद कुछ लिखने कहने को ... (Felt to write, speak it out...after a long while...)

शायद आपको अभी भी याद हो... लिखना तो हम खूब चाहते हैं,  कुछ जिम्मेदारियां हैं, कुछ और परेशानियां, जो हमें रोके रहती हैं ... या यूँ कहें हमे एक कारण देती हैं खुद को रोकने ।  पर असली परीक्षा तो तब होती है, जब हमने पी रखी हो,

चौबाइन चाची की मिसाल

‘ कुछ लोग अईसे ही भीगे रहते हैं कशमकश में, दुविधा में’ ‘पर, अम्मा कुछ लोग तो बड़े आराम से फैसले कर लेते और खुश भी रहते हैं.’ ‘हाँ, हाँ, कुछ लोग सूखे माने दुविधा-मुक्त भी रहते हैं’ चौबाइन चाची ने हमेशा की तरह सिक्के के दोनों पहलुओं को सामने रखते हुए कहा. चौबाइन चाची का एक अपना तरीका था मिसाल दे के बात समझाने का. अठन्नी के सिंघाड़ा से डेढ़-सौ रुपया की साईकिल और पांच पैसा के टाफी से ले पांच रुपया के सरफ तक कुछ भी, चाची बड़ी आराम से प्रयोग कर लेती थीं मिसाल देने में. ये कहानी तब की जब गए रात कोई पौने आठ बजे ननकू भैया आफिस से घर आये. गांव-देहात में सात-आठ बजे ही रात कहला जाती. तो, कहानी कुछ ऐसी है की उस दिन जब ननकू भैया पौने-आत्ब बजे लौटे, तो बड़े ही अनमने-अटपटे से थे. ऐसे ननकू भैया बड़े ही मस्त मिजाज के प्राणी हैं, हमेश खिलखिल करते रहते नहीं तो बकर-बकर करते रहना तो उनकी आदत में ही है. पर, वो रात कुछ अलग थी. सीधे-सादे ननकू भैया बड़े ही शांत और खोये-खोये थे. चाची हमारी बड़ी ही समझदार हैं, वैसे तो खोद-खाद के किस्सा तुरंत जान लेती हिनहिन, पर कब चुपचाप रहना चाहिए ये कोई उनसे सीखे...

खुश रहने की बीमारी (Being Happy Syndrome)

हम बजाएं हारमोनिया खुश रहने की बीमारी - छोटे शहरों में प्रायः पायी जाती थी, या यूँ कहें अभी भी पायी जाती है. ये बड़ी ही संक्रामक बीमारी होती है. पर समय के साथ कुछ मनुष्यों ने खुशियों के विरूद्ध भी अपनी प्रतिरक्षा (immune) को तगड़ा कर लिया है. खुश रहने की बीमारी - अर्थ एवम विकल्प  जितना आसान कहना- सुनना, खाना-पीना, सोना-जागना जैसे कार्य होते हैं, उतना ही आसन खुश रहना भी होता है. या संभवतः ये बीते दिनों की बात है, अब ये उससे कहीं कठिन हो चूका है. देखिये, ज्यादा कुछ करना नहीं होता है इस सुलभ बीमारी से ग्रसित होने के लिए, दुनिया की तरफ दिखिए, मस्ती मारिये, गलतियाँ निकालिए, मजाक करिए, मस्त मुस्कान चेहरे पे लाइए, अन्दर जितना द्वेष भरा है थूक मारिये, गाना गाइए  " **** मराये दुनिया, हम बजाएं हारमोनिया " और खुश रहिये. सोच सोच के कोई न पहलवान बना, न धनवान; हालांकि, केवल खुश रह के भी लोगों ने बड़े तीर नहीं मारे - पर इतना तो है की उन्होंने जिंदगी बड़ी ही शानदार तरीके से मस्ती में काटी... मस्त रहो मस्ती में, आग...

तो कौन सा गाँव बताया आपने?

"तो कौन सा गाँव बताया आपने?" पूरी कोशिश करने के बाद भी जब महाशय मेरी जात का पता नहीं कर पाए, तो अंतिम प्रयासों में उन्होंने गाँव, देहात से अंदाजा लगाने चाहा. सुधाजी के रेलप्रसंग  को पढने पर मुझे ये पुरानी घटना याद आई, उनके ही सुझाव पर आलसी होने के बावजूद मैंने इसे शब्दों में गुथने की कोशिश की. वाराणसी रेलवे स्टेशन  ये बात कोई आठ-एक साल पुरानी होगी, मैं तब B.Sc. कर रहा था, और उस बनारस से पटना की रेल यात्रा पर था. बनारस से वस्तुतः कोई सीधी और अच्छे समय की ट्रेन नहीं है पटना के लिए, तो ज्यादातर जनता भारत के सबसे बड़े रेलवे जंक्सन, मुगलसराय, से ट्रेन पकड़ना पसंद करते हैं. जगह की किल्लत और संभवतः engineering की कोई महान रचना करने के लिए, कुछ भारतीय रेलवे स्टेशन अजीबोगरीब रूप में गधे हुए हैं, वास्तु भी एक कारण हो सकता है. मुगलसराय, अल्लाहाबाद और खरगपुर कुछ ऐसे ही स्टेशन हैं जहाँ अगर लोकल जनता ने मदद नही की तो आप ट्रेन पकड़ चु...

Wishes for the Coming Year 2011!

पथ निहारते नयन   गिनते दिन पल छिन   लौट कभी आएगा   मन का जो मीत गया   एक बरस बीत गया ~ श्री अटल बिहारी वाजपेयी जी Wish the New Year 2011, brings a Lot of Happiness, Success and Prosperity!

Whack!! this Wednesday......"घींच के दूँ क्या एक ???"

बड़ा धन्यवाद  ब्लॉग-अड्डा   एवं   प्रिन्गो  का, इस अनोखे विषय   “ Whack!! this Wednesday ”  पर ब्लॉग आमंत्रण हेतु. इस विषय को देखते ही यूँहीं दिमाग में ये विचार आया की इस पर कुछ हिंदी में लिखा जाये. वैसे भी जब कुछ अत्यंत ही निर्लज्जों को रास्ते-बरास्ते अपनी मूर्खता का प्रदर्शन करते देखता हूँ तो मातृभाषा में कुछ वास्तव में “ ज़ोर से एक घींच कर लगाने का मन करता है ”, जिसे हम अंग्रेजी में “whack” कह रहे. तो भई, ये रही कुछ एक बातें-घटनाएँ जिनके होने पर दिमाग बस एक ही बात आती है “अभी लगाऊं जोर से एक” : 1. ये निर्लज्ज प्राणी, हमारे देश में बड़ी ही आसानी से खोजा जा सकता है. आप सीढ़ियों से नीचे उतर रहे हों या सुबह-सुबह बगीचे में टहल रहे हों या सड़क पर अपने वाहन से सफर कर रहे हों....ये विशिस्ट प्रकार का मनुष्य अपने घृणित कर्म के चिन्ह दीवारों और सड़कों पर थूकते हुए दिखाई पड़ ही जाएगा. जब भी देखता हूँ, मन करता है पटक के मारूं और वहीं झाड़ू-पोंछा भी कराऊं. समझ नही आता, कोई व्यक्ति सौंदर्य-बोध विहीन कैसे हो सकता. अरे भाई, तुम्हारा अपना देश है, तुम्हारे घर का ही ...

Khali DImag Ki Khurafat~~Anubhav

I started thinking about compiling the Year 2009, the way I saw it! The way I experienced it! But, couldn't! Just not because, I couldn't find good time to jot down all the events and happenings of the 2009; also cause I was not finding it easy to gather every moment of the Year of 365 days, x24 hours....;D On the very last day of the Year 2009, we, all the guys of M.Sc.-Geology Batch 2006-08 of BHU , received this mail from one of our classmate, who tried to express everything happened with the Batch people poetically ! He's not a learnt/proven/acclaimed poet, but he did touched our souls! It may not carry any value to anyone, but for our Batch....it did some magic! Magic of Nostalgia! So, I thought to share this precious poem with all my net-mates! With the due help of Google Transliteration, I converted the Hindi-poem scripted in roman, into Devanagari! खाली दिमाग की खुराफात जैसे ही कल का सूरज आसमान पर आएगा बादलों से कूद कर नया साल आ जाएगा, कुछ नयी कहानी हों...