‘ कुछ लोग अईसे ही भीगे रहते हैं कशमकश में, दुविधा में’ ‘पर, अम्मा कुछ लोग तो बड़े आराम से फैसले कर लेते और खुश भी रहते हैं.’ ‘हाँ, हाँ, कुछ लोग सूखे माने दुविधा-मुक्त भी रहते हैं’ चौबाइन चाची ने हमेशा की तरह सिक्के के दोनों पहलुओं को सामने रखते हुए कहा. चौबाइन चाची का एक अपना तरीका था मिसाल दे के बात समझाने का. अठन्नी के सिंघाड़ा से डेढ़-सौ रुपया की साईकिल और पांच पैसा के टाफी से ले पांच रुपया के सरफ तक कुछ भी, चाची बड़ी आराम से प्रयोग कर लेती थीं मिसाल देने में. ये कहानी तब की जब गए रात कोई पौने आठ बजे ननकू भैया आफिस से घर आये. गांव-देहात में सात-आठ बजे ही रात कहला जाती. तो, कहानी कुछ ऐसी है की उस दिन जब ननकू भैया पौने-आत्ब बजे लौटे, तो बड़े ही अनमने-अटपटे से थे. ऐसे ननकू भैया बड़े ही मस्त मिजाज के प्राणी हैं, हमेश खिलखिल करते रहते नहीं तो बकर-बकर करते रहना तो उनकी आदत में ही है. पर, वो रात कुछ अलग थी. सीधे-सादे ननकू भैया बड़े ही शांत और खोये-खोये थे. चाची हमारी बड़ी ही समझदार हैं, वैसे तो खोद-खाद के किस्सा तुरंत जान लेती हिनहिन, पर कब चुपचाप रहना चाहिए ये कोई उनसे सीखे...
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