सहकर्मी बिनीत के सुझाव पे ये काव्य-संग्रह प्रकाशन के पहले ही हफ्ते में मैंने मंगवाई. बिनीत न केवल मेरे सहकर्मी हैं, बल्कि मेरे साथ फूटबाल भी खेलते हैं (हमसे कहीं अच्छा), और पुस्तकों पे विमर्श भी करते हैं. फेसबुक पे यदा-कदा हिंदी प्रसंग और कवितायें पोस्ट करना उनका शौक भी है. उन्होंने सुझाया तो लगा शायद उनकी हिंदी कविताओं का स्रोत मिल गया है. आजकल के आनलाइन पुस्तक-विक्रेताओं को धन्यवाद, ३ दिन के भीतर ही पुस्तक की हस्ताक्षर-प्रति मेरे हाथ में थी. मैं कोई आलोचक नहीं हूँ, ना ही उतनी हैसियत रखता हूँ, पर जो अच्छा लगे उसकी तारीफ करना तो बनता है ( हालांकि तारीफ करने में मेरे हाथ थोड़े तंग ही हैं ). पुस्तक: ख़ैर...छोडो कवी: विश्व दीपक प्रकाशन: हिंद-युग्म पन्ने: १४४ सबसे पहली बात जो मुझे अच्छी लगी वो थी कविताओं की सूक्ष्मता और सुगमता. कवितायेँ सतही कतई नहीं हैं, पर फिर भी बहुत ही सहज हैं. हमारी प्रायः की सोच को ही बड़े ही कुशल से शब्दों में ...
My travel and Bullet ride stories, random thoughts, photography and many other chaotic expressions as a Ghumakkar...