Skip to main content

चौबाइन चाची की मिसाल


कुछ लोग अईसे ही भीगे रहते हैं कशमकश में, दुविधा में’
‘पर, अम्मा कुछ लोग तो बड़े आराम से फैसले कर लेते और खुश भी रहते हैं.’
‘हाँ, हाँ, कुछ लोग सूखे माने दुविधा-मुक्त भी रहते हैं’ चौबाइन चाची ने हमेशा की तरह सिक्के के दोनों पहलुओं को सामने रखते हुए कहा.

चौबाइन चाची का एक अपना तरीका था मिसाल दे के बात समझाने का. अठन्नी के सिंघाड़ा से डेढ़-सौ रुपया की साईकिल और पांच पैसा के टाफी से ले पांच रुपया के सरफ तक कुछ भी, चाची बड़ी आराम से प्रयोग कर लेती थीं मिसाल देने में.

ये कहानी तब की जब गए रात कोई पौने आठ बजे ननकू भैया आफिस से घर आये. गांव-देहात में सात-आठ बजे ही रात कहला जाती. तो, कहानी कुछ ऐसी है की उस दिन जब ननकू भैया पौने-आत्ब बजे लौटे, तो बड़े ही अनमने-अटपटे से थे. ऐसे ननकू भैया बड़े ही मस्त मिजाज के प्राणी हैं, हमेश खिलखिल करते रहते नहीं तो बकर-बकर करते रहना तो उनकी आदत में ही है. पर, वो रात कुछ अलग थी. सीधे-सादे ननकू भैया बड़े ही शांत और खोये-खोये थे. चाची हमारी बड़ी ही समझदार हैं, वैसे तो खोद-खाद के किस्सा तुरंत जान लेती हिनहिन, पर कब चुपचाप रहना चाहिए ये कोई उनसे सीखे. चाची को समझ आए चूका था की उनका दुलरुवा ननकू किसी दुविधा में है, पर उनको पता था अभी पूछे तो नालायक खाना भी न खा पायेगा.
चौबाइन चाची की रोटियाँ 
मुंह-हाथ धो, रोटी-नेनुआ की सब्जी खा जब ननकू भैया उसी कश्मकस में भीगे-भागे जब बिस्तर की तरफ जब पैर धरे, तो पीछे से चाची टोकी, ‘का रे ननकू, कउन दुविधा में पड़ा है रे? अम्मा को बताये बिना सुतेगा का?


अरे अम्मा का बोलें, आज अइसा पाप हो गया हमसे’, एकदम रो ही पड़े थे भैया बोलते हुए, ‘अरे अम्मा आज आफिस से आते में हम जब बड़का चौराहे के पास पहुंचे रहे थे तो का द्देखे की एगो आदमी रोड के किनारे पड़ा हुआ था. सर से खून बह रहा था, भनभनाता हुआ, और हाथ एहर-उहर मारे जा रहे था. शायद दर्द के मारे. सब कोई ओको देख के आगे बढ़ जा रहा था. हम भी आगे बढ़ गए, पर फेन हमको लगा के अपना कोई के साथ ऐसा होता तो कितना पूरा लगता. फेन अंदर से कौनो आवाज़ आया काहें पचड़े में पड़ रहा है रे ननकू, पोलिस सुनेगी भी नहीं और मरबो करेगी. तब तक चौराहा आ गया और हरी बत्ती पे एही उधेड़बुन में हम आगे बढ़ गए.

बबुआ तुम वापस नहीं गए?’ चौबाइन चाची ने दुबके से कोने में बैठे ननकू भैया के सर पे हाथ रख के पुछा.

सर को दोनों घुटने के बीच से निकालते हुए, बुशर्ट के बांहे पे आँख को पूछते हुआ, रुंधे गले से भैया के गले से कुछ कुछ निकला, ‘गए न अम्मा. मन नहीं माना, तो हम अगला मोड से वापस गए, और सिंगल तोड़ते हुए फनफना के हम वहान पहुचे. एक भले आदमी ने ट्राफिक पोलिस को बोल दिया था, तो उ भी वहाँ पहुच गया था. हम उसके साथ अपने गाड़ी पे फिर बिठा के उसको ले गए. पास के हस्पताल में भरती करा के फिर आ रहे. उ पोलिस वाला अच्छा था, अपना गमछा बांध-बूंध के खून रोक दिया था तब्बे हम पहुच गए.

खींच के भैया को चाची ने गले से भींच लिया, ‘अरे लल्ला, अच्छा काम न किये तुम. तो रो कहें रहा है रे?

अम्मा, बात अच्छे बुरे काम की नहीं है. इस बात की है के हम एक बार में कहें नहीं किये जो सही था? हमको पता था की उसकी जान जा सकती थी, पर हम भी बाकियों की तरह आगे काहें बढ़ गए?

आंसूओं को अपने साडी के पल्लू से पोछती हुए अम्मा पूछी, ‘तुम्हारे कपडे पे भी खून का दाग-वाग लगा है? देयो तो तुमको बताते हैं, तुम दुविधा में काहें थे?

अचंभित होने का इसमें कुछ नहीं है. चाची की खासियत ही अजीबोगरीब तरीके के ऐसे मिसाल देना के बात बस दिमाग में घर कर जाए. भैया ने पीठ पे लगा दाग दिखाते हुए सर्ट अम्मा को बढ़ाई.
‘आओ तो साथ में जरा स्नानघर में’ अम्मा भैया और हमको बुलाते हुए आगे बढ़ीं.
अब आदत पड़ गयी थी, चाची के मिसालों की. कभी सिलबट्टे पे, तो कभी गाय माँ के नांद पे, तो आज स्नानघर में मिसाल का दिन आ गया था.

ललिता जी का नीला सरफ
(courtesy:GoogleImages)
तुम्हारे बाबा का तो तुमलोग जानबे करते हो. कुरता झक्क-सफ़ेद होना चाहए, ना नीला ना तनिको पीला. तो पहिले तो हम भिगाए रखे रहते थे सोडा में, फिन थोडा सस्ते वाले सरफ में. तुम्हारी मौसी कहाँ करती थी की एक बार सरफ लगाओ तो सही, पर हम को तो वोही भीगा-कछार के कपड़ा सफा करने की आदत पड़ी थी. मेहनत भी करते थे इमानदारी से, और अगला सुबह बाबा की झिकझिक भी सुनते थे. बेटा, कुछ लोग होते हैं भिग्गाये के रखे रहते कपड़ा दिन्न्दीन भर सफेद-पीला सरफ में, और फिर भी दुविधा में रहते, कसमसाए से रहते के कब निकाले कब धोएं. कितना रगडें, कितना पीतें. और कुछ लोग होते हैं, बस फैसला कर लेते और सफेद-नीला सरफ ले आते, दूरदर्शन वाली ललिता जी वाला, और मस्त आराम से चम्चाम्ये देते कपडा तुम्हारी अम्मा की तरह.’
उस समय हम बड़ा छोटे हुए करते थे, ननकू भैया का हमें न पता, पर हमारे सर के उपर से निकल गयी बात, ‘पर चाची, एम्मे समझने का कका था? हमको ई मिसाल सही नहीं लगा, एकदम्मे नहीं

हा हा हा’, चाची की हसी भी अट्टहास से कम नहीं थी, ‘अरे बबुआ, बात एकदम सीधी है. जिंदगी, चाहें ख़ास आ रोजमर्रा में, हम कई बार ऐसे दोमुहाने पे खड़े होते जहां से आगे जाना का दोनों रास्ता सही होता. एक हालांकि सस्ता माने जल्दी का हो सकता, तो दूसरा ‘किफायती’ मगर जिम्मेदारी का होता. चार आना ज्यादा दे के देह को थोड़ा आराम दे दुविधामुक्त काम बेहतर है की बस पिलपिलाये रहें और थक्बो करें, कामो अच्छा न हो.’

‘दो-चार आना ज्यादा देना’

“हाँ, तो वैसे ही जब ननकू आगे बढ़ गया, तो उसको शारीरिक आराम तो मिला पर मानसिक नहीं. दिमाग में वाही छाया रहा की सही नहीं किये, कुछ गलत हुआ. दुविधा में रहा. भीगा रहा इस चिंता में की गलत किये, उसको कुछ हो गया तो. दो रुपये का समय तो बचा, पर मन का का? उससे तो फिर शारीर पे आयेगा न? पर, अगर वो दुविधा से परे हो, एक बार में फैसला कर लेता नहीं बचाने  है उसको, तो अंदर से भी खुश रहता, है न?’

‘पर, अम्मा हमसे ऐसा काहें हुआ?’

कुछ लोग अईसे ही भीगे रहते हैं कशमकश में, दुविधा में

पर, अम्मा कुछ लोग तो बड़े आराम से फैसले कर लेते और खुश भी रहते हैं.’

हाँ, हाँ, कुछ लोग सूखे माने दुविधा-मुक्त भी रहते हैं’ चौबाइन चाची ने हमेशा की तरह सिक्के के दोनों पहलुओं को सामने रखते हुए कहा।

हाँ अम्मा, हम समझ गए. हम घूम फिर के काम वोही किये जो सही था, पर बिना सोचे भी कर सकते थे. आगे से ख्याल रखेंगे’

हम भी समझ गए चाची, आते हैं अभी...'बोलते हुए हम सरपट उनके दुआर से भागे।

...कहाँ जा रहा है रे?’

‘अपनी अम्मा को समझाने, कपड़ा भिगाए ना रखें, दुविधा छोड छाड के नीलका सरफ ले आयें....

(आज जब बरसों बाद Indiblogger का Soak No More! प्रतियोगिता देखा तो अनायास ही ये कहानी जेहेन में आ गयी)




Top Blogs Related Posts with Thumbnails
Enhanced by Zemanta

Comments

  1. All the best for the contest, Punit. An entry in Hindi is always special and I am sure you have worked hard over this. I am impressed :)

    ReplyDelete
  2. @facebook-100000502878429:disqus Glad that you liked the post, hope you would have enjoyed it too :) I really like to write occasionally in Hindi, though it gives a comfortable liberty to express, sometimes gets shamefully difficult to chose the correct words and phrases :/

    ReplyDelete

Post a Comment

Thanks for the visit! It would be great if you may spare a few seconds more to comment on the post...

Popular posts from this blog

Hoolangapar - Home of Indian Gibbons

Known as the Knowledge city of Assam – Jorhat is a small town in the NorthEast India with a unique distinction of sheltering India’s only population of Apes – the Gibbons . Hoolangapar Gibbon Sanctuary spreads across an area of about 21 km sq and is named after Hoolock Gibbons . Not just the Gibbons, it also houses 7 species of monkeys out of total 15 species that are found in India, varied species of birds, spiders and squirrels. A morning walk inside the Hoolangapar Gibbon Sanctuary Gibbons are the Apes and are differentiated on smaller size, lower sexual dimorphism, no nesting habits from the Greater Apes. Hoolock gibbons are the second largest of the gibbons and spread from NE India to Myanmar, with smaller populations in Bangladesh and China. Hoolangapar Sanctuary provides an unparalleled opportunity to meet these gibbons in their natural habitat. Also, the sanctuary has India’s only population of nocturnal primates – the Slow Loris . With distinctive large eyes, every...

Home Quarantined Day - the Last 1

I am not at all getting in to exactly how many days I stay locked in this room. I did not complete the course, neither Dark Season 3, nor the Book and didn't click a lot. I just kept working, on this or that stuff, cold calling people, and watched a lots of movies and web-series. But not Dark S03 - it's too intense; 3 timelines now intertwined with 2 alternate dimensions! I love all these complexities, absolutely, but the series is too heavy. I couldn't complete the course I intended to - was not at all in mood. One day, however, I did set up the camera and the flash and the stand - but like always camera battery died, and I have been too lazy to recharge. A few random shots like the above one and the one below - I didn't do much. But, I kept keeping track of my body temperature and it never crossed the normal number. So, I am good and finally yesterday when Hospital confirmed that "I can live my life", my wife agreed to put an end to this "no-good for an...

Home Quarantined Day 1

Nothing to fear about, I don't show any symptoms.  One call, rush to meet someone, a Cab ride --- called it a day! Two days later, the Cab Aggregator called me with a news - Driver has turned positive.  That one clicked the panic button, aah for my wife at least. We as a family are sort of locked down in this place we call our home with a 1yr old kid and my mother in law. Except for me, none of my family members have been out of the main door more than twice since mid-March. My wife literally tried everything to cut off from the social-mingling, new mom's paranoia, and yesterday the one thing that she can utter was "irony". Anyways, I have done what's needed - informed authorities (advised to stay home, quarantined alone), locked myself in a room and living a life of King -- wife and my mother-in-law delivering all that is needed timely. But, let me tell -- it's no fun. Most of the time I have no one to talk to, no one to argue on a nonsense news running on TV...